तिलस्मी किले का रहस्य भाग_ 17
कहानी _**तिलस्मी किले का रहस्य**
भाग _ 17
लेखक_ श्याम कुंवर भारती
प्रताप और सुरभी जिस कमरे में थे उसके बीचों बीच बड़ा था जालीदार गुम्बद था जिससे होकर हवा और रोशनी आ रही थी ।लेकिन उसकी ऊंचाई इतनी ज्यादा थी की उसके अंतिम छोर तक किसी भी हाल में पहुंच पाना मुश्किल था।ऊपर से छत जहा से शुरू होती थी उसमे लोहे की मोटी जाली लगी हुई थी जिससे रोशनी और हवा आ रही थी ।
इसका मतलब है इस कमरे के ऊपर खुली जगह है ।हमे किसी तरह इस कमरे से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढना चाहिए।प्रताप ने कहा।
ठीक है चलो ढूंढते है ।सुरभी ने कहा ।
जैसे ही यहां से बाहर निकलूंगी पहले खाना खाऊंगी।उसने फिर कहा।
तुम और क्या कर सकती हो उससे पहले चलो रास्ता ढूंढते है ।प्रताप ने हंसते हुए कहा।
सुरभी भी हसने लगी।
उन्हे कोई दरवाजा नहीं मिला ।प्रताप ने कहा _ बड़ा अजीब कमरा है।इसमें बाहर जाने का दरवाजा ही नहीं है।हमे फिर वापस जाना पड़ेगा।
सुरभी ने कहा _ मैं बहुत थक चुकी हूं ।अब मुझसे खड़ा नहीं रहा जा रहा है।इतना कहकर वो एक दीवाल के बगल में पड़ी पत्थर की कुर्सी पर बैठ गई।उसके बैठते ही उसके बगल में दीवाल घिसकने की आवाज आने लगी ।वो डर कर खड़ी हो गई ।दीवाल फिर रुक गई ।
प्रताप ने कहा _ तुम खड़ी क्यों हो गई । जहां जैसे बैठी थी वैसे ही बैठे रहो।
सुरभी तुरंत बैठ गई ।उसके बगल की दीवाल खिसक गई और वहा एक दुरवाजा नजर आया ।
दोनो चौंक गए ।सामने एक सीढ़ी नजर आ रही थी जो ऊपर की ओर जा रही थी।
प्रताप ने कहा,_ अब उठो तुम और अपनी तलवार तैयार रखना पता नही आगे कौन सी मुसीबत हमारा सीसामना करे।
दोनो सीढ़ियों से बड़ी सावधानी से ऊपर चढ़ने लगे।दोनो जैसे ही ऊपर पहुंचे उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।वे दोनो बिलकुल खुले आगमन के नीचे खड़े थे।सामने एक पानी से भरी बड़ी सी बावली थी ।उसके किनारे सीढ़ियां बनी हुई थी ।किनारे छोटे छोटे की कमरे बने हुए थे ।जिनके सामने बिना दरवाजे की दीवाल बनी हुई थी।
जिसके अंदर बाहर से देखा नही जा सकता था ।थोड़ी थोड़ी दूर पर और भी छोटे छोटे कमरे बने हुए थे जिनके अंदर पत्थर का बैठने की कुर्सियां बनी हुई थी ।
प्रताप ने कहा मेरे ख्याल से इसमें राजा के परिवार की औरते नहाने आती होंगी ।ये पर्दे वाले कमरे उनके कपड़े बदलने के लिए होंगे और बाकी बिना दरवाजे वाले कमरे सैनिकों के लिए होंगे जो राज परिवार की औरतो के सुरक्षा के लिए होते होंगे।
वाह प्रताप तुम तो अंदाजा लगाने में माहिर हो ।मेरे ख्याल से बावड़ी के पास इनके होने का यही उपयोग हो सकता है।सुरभी ने प्रताप की तारीफ करते हुए कहा।
प्रताप ने देखा बावड़ी में बरसात का पानी आने का रास्ता बनाया गया था।बावड़ी इतनी गहरी थी की नीचे से भी पानी का स्रोत आ रहा था इसलिए आज भी उसमे पानी भरा हुआ था।
आगे बावड़ी का पानी भर जाने पर उसकी निकासी के लिए भी पत्थर की नालियां बनी हुई थी जिसका पानी जगह जगह जमा करने के लिए बड़े बड़े पक्का गड्ढा बनाया गया था।जिनका पानी चारो तरफ फैले बगीचे और बागान में जाता होगा।
प्रताप ने इस तकनीक की बहुत तारीफ किया ।
तभी उसकी नजर चारो तरफ बनी ऊंची ऊंची दीवारों की तरफ गई जिनको पार कर उस पर जाना बहुत मुश्किल था।
हमलोग सुरंग और तहखाना से बाहर तो आ गए लेकिन यहां से बाहर जाने का रास्ता नजर नही आ रहा है।प्रताप ने चिंतित होकर कहा।
आखिर कोई तो रास्ता होगा इससे बाहर जाने के लिए।
सुरभी ने कुछ सोचते हुए कहा ।
तुम सही कह रही हो लेकिन कोई रास्ता दिख नही रहा है।चलो ढूंढते है ।प्रताप ने कहा और जैसे ही आगे बढ़ना चाहा अचानक एक दीवाल से दोनो साधु हाथ में तलवार लिए सामने आ गए और दोनो को ललकारा अगर बच सकते हो तो बचो वरना मरने के लिए तैयार रहो ।उन दोनो को सामने मौत नजर आई ।प्रताप ने अपना भाला सामने तान कर सुरभी को अपनी तलवार तैयार रखने को कहा ।
शेष अगले भाग _ 18 में
लेखक_ श्याम कुंवर भारती
बोकारो, झारखंड
मोब.9955509286
Mohammed urooj khan
30-Jan-2024 11:26 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Milind salve
24-Jan-2024 11:39 PM
V nice
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Sushi saxena
24-Jan-2024 11:36 PM
Nice one
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